क्या कभी वह दिन आएगा?

-रिंकू परिहार

क्या कभी वह दिन आएगा जब मां-बाप बेटी को अपना बच्चा समझकर बड़ा करेंगे? आखिर कब तक समझदार मां-बाप विवाह को गुड्डा-गुड्डी के खेल की तरह निपटाते रहेंगे? और कब तक हम लडकियों को जल्द/बाल  विवाह के मंडप में फूंकते रहेंगे?

बाल विवाह भले ही गैरकानूनी हो लेकिन भारत में धड़ल्ले से जारी है। इस मामले में उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश और हरियाणा जैसे राज्य काफी बदनाम हैं। इस कुप्रथा के बरकरार रहने की वजह क्या है और क्या हैं इसके परिणाम?

बाल विवाह शायद ऐसा पहला अपराध है जो होने से पहले तो अवैध है, लेकिन होते ही वैध बन जाता है! मतलब यह कि बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1929 और 2005  के तहत बाल विवाह करना एक दंडनीय अपराध जरूर है, लेकिन हो चुका विवाह अपने आप में अवैध या गैरकानूनी नहीं है। खेलने-कूदने की उम्र में परिवार की जिम्मेदारी इनके स्वास्थ्य के लिए बहुत घातक है। कम उम्र में मां बनने से जच्चा और बच्चा दोनों की जान को खतरा रहता है।

अशिक्षा और बाल विवाह का अंतर सम्बन्ध

  •  पारिवारिक कार्यो की अधिकता के कारण लडकियों से घर का और खेतो का काम कराना ज्यादा उचित समझते है , शिक्षा की बजाय घर का काम करना लडकी के लिए ज्यादा जरूरी समझने के कारण भी लड़कियां नही पढ़ रही है
  •  ग्रामीण इलाकों में लड़कियों को एक जिम्मेदारी समझा जाता है. मां-बाप और घरवाले जल्दी उसके हाथ पीले कर अपनी इस अहम जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना चाहते हैं और  लडकियों की पढ़ाना जरूरी नही समझते इस वजह से जो लडकियाँ पढ़ाई कर रही होती है उनकी पढ़ाई भी बीच में छुट जाती है
  • लड़कियों के 15-16 वर्ष की उम्र तक पहुंचते ही उनके लिए भावी वर की तलाश शुरू हो जाती है.इसके पीछे अशिक्षा के अलावा आर्थिक और सामाजिक वजहें(कन्यादान , बालविवाह ) भी हैं. गांवों में यह माना जाता है कि बढ़िया वर हमेशा नहीं मिलता. इसलिए कोई योग्य वर मिलते ही मां-बाप अपनी बेटी के हाथ पीले कर निश्चिंत हो जाना चाहते हैं.
  •  ग्रामीण इलाकों में तमाम सहूलियतों के बावजूद पूरी अर्थव्यवस्था खेती पर टिकी है. इसलिए फसल बेहतर होने की स्थिति में मां-बाप अपनी इस जिम्मेदारी से मुक्ति पा लेना चाहते हैं. वहां दहेज अब भी एक अभिशाप के तौर पर खड़ा है
  • कहीं कहीं जहाँ तक गावों में स्कूल है वहाँ तक तो लड़के लड़कियां शिक्षा प्राप्त कर लेते है आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिए लडकियों को गावं से दूर जाना पड़ता है असुरक्षा की भावना से माता- पिता लडकियों को घर से दूर पड़ने के लिए नही भेजते है और शादी करवा क़र ससुराल भेज देते है
  • संसाधनों की कमी की वजह से भी दूर के स्कूल- कालेज में लडकियाँ  पड़ने नही जा पाती है.
  • एक बार फेल हो जाने के बाद भी वापिस स्कूल में दाखिला नही लेते और पड़ी बिच में ही छोड़ देते है .
  • स्कूलों और कालेजो में विषयों की कमी होने के कारण रोजगार की सम्भावना कम होने के कारण भी लडकियो का पड़ाई में ज्यादा रुझान नही रहता तो नही पड़ने की वजह से माँ बाप भी अपनी जिमेदारी पूरी करना ज्यादा जरूरी समझते है और शादी कर देते.
  • रोजगार की कमी होना और उनकी आकांक्षाओ के अनुरूप जानकारी नही होने की वजह से भी शिक्षा का स्तर कमजोर है ( सभी लडके लडकियों के सपने सिर्फ पुलिस और टीचर बनना ही है
  • छुआछुत ( अस्पर्श्यता) की वजह से भी आदिवासी बच्चों में हिनभावना पैदा होती है जिस वजह से वो स्कूल जाने से कतराते है .

‘’आजादी के सात दशक बाद भी हम इस बुराई से पूरी तरह नहीं निकल पा रहे हैं । देश भर में कई सारे स्वयं सेवी संगठन इसमें अपना सहयोग भी दे रहे हैं।हमारे समाज का एक बड़ा हिस्सा अभी भी अंधेरे और अशिक्षा में जी रहा है। तमाम माता-पिता अपनी मुश्किल कम करने के लिए अपनी बेटी को मुसीबतों के कुएं में जानबूझकर धकेल देते हैं। सच तो यह है कि इस तरह की एक भी घटना होती है तो यह पूरे समाज के लिए गंभीर चिंता का विषय है।‘’

 कम उम्र में विवाह से एक बड़ा नुकसान यह होता है कि तमाम प्रतिभाएं अविकसित ही रह जाती हैं। कितनी ही प्रतिभाशाली लड़कियों की उन्नति के रास्ते बंद हो जाते हैं। समाज में लड़कियों को लेकर दोहरा नजरिया हमेशा से ही रहा है और वह अलग- अलग स्तरों पर साफ दिखाई भी देता है।