बदलाव की कहानी

-रिंकू परिहार

मेरी कहानी मेरी जुबानी

मुझे इस समूह से जुड़े हुए एक साल हो गया मुझे इस समूह से जुड़ने के बाद मुझ में और मेरे दोस्तो में बहुत सारा बदलाव आया सबसे पहले तो मैनें अपनी दो साल से पढाई छोड़ दी उसको मैंने वापस षुरू की और मेरे समूह में जिन लड़कियो ने दो या तीन साल से पढ़ाई छोड़ रखी थी उन्होने भी अपनी पढ़ाई फिर से षुरू की और एक लड़के और लड़की के जिन्दगी में घर से लेकर बाहर तक का अंतर लड़की को देर रात तक बाहर नहीं घुमने देते है जबकि लड़का लड़का अपनी मर्जी से बहुत सारी रात तक बाहर घुमता है तो भी घर वाले उसको नहीं टोकेगें क्यों कि वो लड़का है और गाँव में तो कुछ ऐसे घर भी है जहाँ खाने-पीने में भी भेदभाव करते है लड़के को अच्छा खिलाते-पिलाते है अच्छा पढ़ना ,घुमना ,फिरना जबकि ये सब आजादी एक बेटी को नहीं मिलती है क्यों कि बेटी को पराया धन मानते है ये तो आगे का घर संवारेगी वैसे भी इसे तो षादी करके पराया घर बसाना है मैं तो यही सोचती हुँ की बेटा और बेटी को सम्मान जितना बेटे को सम्मान देते है उतना बेटी को भी मिलना चाहिए क्यों कि वो भी तो हमारे परिवार का हिस्सा है मेरी षादी मेरी बड़ी बहिनों के साथ करवा दी थी उस समय में दो साल की थी मुझे ये श्ी नहीं पता था कि मेरी षादी षादी हो गई जब 5जी कक्षा में श्ी जब मुझे मेरी आंटी ने बताया कि तेरी षादी हो गई फिर 9जी कक्षा में थी तो मुझे ससुराल श्ेजने लग गये थे क्यों कि मेरे शई और मेरे बीच में आंटा-षाटा था जब कक्षा 10जी  में आई थी तब मेरे ससुराल वालो ने फाॅर्स किया की आपकी बेटी को श्ेजो मेरे पापा ने श्ी दबाव में आकर मुझे ससुराल श्ेजा क्योंकि मेरे पापा को डर था कि मैं मेरी बेटी को नहीं श्ेजूगाँ तो मेरे बेटे की षादी नहीं करवायेगें उस समय मेरे दो एग्जाम श्ी छुट गये थे 10जी के बाद में अपनी पढाई नहीं कर पाई हुँ फिर  कुछ दिनों के बाद मेरे ससुराल वाले मुझे वापस लेने आये थे जब मेरे पापा ने मना कर दिया था तो मेरा पति किसी और को लेकर चला गया इस वजह से मेरे परिवार में चिंताएँ बढ़ी फिर में 18 साल की थी तब मेरे शई की षादी उसी घर में करवा दी थी वो और लेकर आ गया था तो श्ी मेरे पापा ने मुझे वहाँ श्ेजा और मैं श्ी मजबूरी में आकर वहाँ दो या तीन बार वहाँ गई थी क्योंकि मैनें सोचा कि अगर मैं नहीं जाऊंगी तो मेरी भाभी को नहीं भेजेगें पर मुझमंे इस जागृति परियोजना से जुड़ने के बाद मुझमें बदलाव आया कि मुझे मेरी जिंदगी को कैसे सवांरनी है फिर मैंने मेरे पापा को मना कर दिया था कि मैं अब ससुराल नहीं जाऊँगी और अब मैं ससुराल नहीं जाती हुँ तो अब मेरी भाभी को भी नहीें भेजते है और अब वो मेरे से पैसै लेने की बात करते है और मेरे पापा को बोलते है कि आपकी बेटी को क्यों सिर चढ़ा रखा है इसे या तो नाते दो या हमें पैसै दो और मेरे घर में विवाद होते रहते है और अभी तक हमारा फैसला भी नहीं हो पाया है। जागृति परियोजना एक एक समूह है जिसमें मैंने अपने हक के लिए लड़ना सिखा और अब मैं अपने पापा मम्मी से भी अपने बारे में बात करती हुँ कि जो मुझे लड़का पसंद आयेगा उसी से षादी करूँगी और मेरे परिवार वाले भी कहते है कि जहाँ तुझे सही लगे वहाँ तेरी षादी करवायेंगे।


चंचल लडकी जो हजारों सपने लिए उडान भरने का प्रयास करती है