अस्पतालों में जातीय भेदभाव का शिकार होती हैं गर्भवती महिलाएं।

भारत में महिलाओं के प्रजनन संबंधी अधिकार केवल जैविक संबंधी जागरूकता या शिक्षा की कमी से नहीं जूझ रहे हैं। यह कई स्तरों पर कई सवालों से टकराते हैं, जिससे आधी आबादी सबसे अधिक प्रभावित हो रही है।

क्या प्रजनन संबंधी अधिकारों का मतलब सिर्फ प्रजनन यानी बच्चे पैदा करने का अधिकार है? या फिर यह मुद्दा औरतों के प्रजनन संबंधी आज़ादी के इर्द-गिर्द खड़े अनेक अधिकारों से जुड़ा है।

जातीय और वर्गीय भेदभाव से घिरा है प्रजनन संबंधी अधिकार

यूथ की आवाज की रिपॉर्ट के मुताबिक
प्रसव के दौरान अस्पतालों में महिलाओं के अनुभव को जानने समझने के लिए अपने इलाके के अस्पताल के दौरे ने इस तथ्य को सतह पर लाने का काम किया कि भारत में प्रजनन संबंधी अधिकार के मामले में महिलाओं के अनुभव जातीय और वर्गीय आधार पर एक ही तरह के नहीं हैं। भारतीय महिलाओं के प्रजनन संबंधी अधिकारों के लिए संघर्ष प्रजनन संबंधी स्वतंत्रता के साथ-साथ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों के अखाड़ों के इतर जातीय कारणों से भी जुड़ा हुआ है। जो विषमताओं और विरोधाभासों के मद्देनज़र “आयुष्मान भारत” स्वाथ्य योजनाओं वाले देश में महिलाओं के प्रजनन संबंधी अधिकारों की दिशा में नई तस्वीर प्रस्तुत करता है।

भारत में माताओं और नवजात शिशुओं के लिए स्वास्थ्य सुविधाएं किसी भी आबादी के लिए आधारभूत स्तर पर प्रदान की गई हैं, जो आर्थिक और जातीय विषमता के कारण जातीय और वर्गीय समाज तक पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देती है। तमाम कल्याणकारी योजनओं का लाभ आधी आबादी के वंचित समाज को नहीं मिल पाता है।

सामाजिक और आर्थिक विषमता को कम करने के लिए आर्थिक और कल्याणकारी व्यवस्था के आमूल रूप से पुनर्गठन की स्पष्ट तौर पर आवश्यकता है, क्योंकि माताओं और नवजात शिशुओं तक स्वास्थ्य अधिकार पहुंचाने में जाति और वर्ग आधारित भेदभाव एक नई समस्या के रूप में मौजूद है जिसकी पहचान की जानी चाहिए।

वंचित महिलाओं तक स्वास्थ्य सेवाओं के अधिकार का सवाल सबसे पहले इस प्रश्न को सतह पर लाने की कोशिश करता है कि “जाति और स्वास्थ्य” के बारे में हम कितना कुछ जानते हैं। जातियों के बीच स्वास्थ्यगत विषमता को कम करने के लिए प्रयास बदस्तूर जारी है।

क्या बताते हैं आंकड़ें?
एनएफएचएस के अपवाद अध्ययन को छोड़कर, जातियों के बीच स्वास्थ्य विषमताओं के बारे में अध्ययनों की कमी है। एनएफएचएस के 2005-06 के आंकड़ें बताते हैं कि भारत में अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य वंचित समुदाय के लोगों में नवजात, नवजात बाद और शिशु मृत्यु दर में बड़ी खाई है। इनके अनुसार राष्ट्रीय मृत्यु दर अनुसूचित जाति में 46.6, अनुसूचित जनजातियों में 39.9 है, नवजात शिशु मृत्यु दर 20.1 और 22.3, शिशु मृत्युदर 66.4 और 35.8 है।

इस रिपोर्ट ने इसके कारण के रूप में निरक्षरता दर और वर्ग आधारित एवं लिंग आधारित असमानताओं को ज़िम्मेदार पाया